Tuesday, 25 February 2014

वक्त

समय चक्र रुकता नहीं, समय परिवर्तनशील, आज समय के अनुसार रीती रिवाजों में संशोधन को मान्यता देता मोटा गुडा ठिकाना के सिरदार आधुनिक में वैदिक संस्कार संभाले प्रग्रति के राह में आधुनिक शिक्षा से सम्पन्नता लिए बढ़ रहा हैं.   

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  1. 1) राजपूतो में पहले सिर के बाल बड़े रखे जाते थे
    जो गर्दन के नीचे तक होते थे युद्ध में जाते समय
    बालो के बीच में गर्दन वाली जगह पर लोहे
    की जाली डाली जाती थी और वहा विषेस
    प्रकार का चिकना प्रदार्थ
    लगाया जाता था इससे तलवार से गर्दन पर होने
    वाले वार से बचा जा सके
    2) युद्ध में धोखे का संदेह होने पर घुसवार अपने
    घोड़ो से उतर कर जमीनी युद्ध करते थे
    3) मध्य काल में देवी और देव पूजा होती थी जंग में
    जाने से पूर्व राजपूत
    अपनी कुलदेवियो की पूजा अर्चना करते थे
    जो ही शक्ति का प्रतिक है मेवाड़ के
    सिसोदिया एकलिंग जी की पूजा करते
    4) हरावल - राजपूतो की सेना में युद्ध का नेतृत्व
    करने वाली टुकड़ी को हरावल
    सेना कहा जाता था जो सबसे आगे रहती थी कई
    बार इस सम्माननीय स्थान को पाने के लिए
    राजपूत आपस में ही लड़ बैठते थे इस संदर्भ में
    उन्टाला दुर्ग वाला चुण्डावत शक्तावत
    किस्सा प्रसिद्ध है
    5) किसी बड़े जंग में जाते समय या नय प्रदेश
    की लालसा में जाते समय राजपूत अपने राज्य
    का ढोल , झंडा ,राज चिन्ह और
    कुलदेवी की मूर्ति साथ ले जाते थे
    6) शाका - महिलाओं को अपनी आंखों के आगे
    जौहर की ज्वाला में कूदते देख पुरूष जौहर कि राख
    का तिलक कर के सफ़ेद कुर्ते पजमे में और
    केसरिया फेटा ,केसरिया साफा या खाकी साफा और
    नारियल कमर कसुम्बा पान कर,केशरिया वस्त्र
    धारण कर दुश्मन सेना पर आत्मघाती हमला कर इस
    निश्चय के साथ रणक्षेत्र में उतर पड़ते थे
    कि तो विजयी होकर लोटेंगे अन्यथा विजय
    की कामना हृदय में लिए अन्तिम दम तक शौर्यपूर्ण
    युद्ध करते हुए दुश्मन सेना का ज्यादा से
    ज्यादा नाश करते हुए रणभूमि में चिरनिंद्रा में
    शयन करेंगे | पुरुषों का यह आत्मघाती कदम
    शाका के नाम से विख्यात हुआ
    7) जौहर : युद्ध के बाद अनिष्ट परिणाम और होने
    वाले अत्याचारों व व्यभिचारों से बचने और
    अपनी पवित्रता कायम रखने हेतु अपने सतीत्व के
    रक्षा के लिए राजपूतनिया अपने शादी के जोड़े
    वाले वस्त्र को पहन कर अपने पति के पाँव छू कर
    अंतिम विदा लेती है महिलाएं अपने कुल देवी-
    देवताओं की पूजा कर,तुलसी के साथ गंगाजल
    का पानकर जलती चिताओं में प्रवेश कर अपने
    सूरमाओं को निर्भय करती थी कि नारी समाज
    की पवित्रता अब अग्नि के ताप से तपित होकर
    कुंदन बन गई है और राजपूतनिया जिंदा अपने इज्जत
    कि खातिर आग में कूद कर आपने सतीत्व
    कि रक्षा करती थी | पुरूष इससे चिंता मुक्त
    हो जाते थे कि युद्ध परिणाम का अनिष्ट अब
    उनके स्वजनों को ग्रसित नही कर सकेगा |
    महिलाओं का यह आत्मघाती कृत्य जौहर के नाम
    से विख्यात हुआ |सबसे ज्यादा जौहर और शाके
    चित्तोड़ के दुर्ग में हुए
    8) गर्भवती महिला को जौहर
    नहीं करवाया जाता था अत: उनको किले पर
    मौजूद अन्य बच्चों के साथ सुरंगों के रास्ते
    किसी गुप्त स्थान या फिर किसी दूसरे राज्य में
    भेज दिया जाता था ।राजपुताने में सबसे
    ज्यादा जौहर मेवाड़ के इतिहास में दर्ज हैं और
    इतिहास में लगभग सभी जौहर इस्लामिक
    आक्रमणों के दौरान ही हुए हैं जिसमें अकबर और
    ओरंगजेब के दौरान सबसे ज्यादा हुए हैं ।
    9) अंतिम जौहर - पुरे विश्व के इतिहास में अंतिम
    जौहर अठारवी सदी में भरतपुर के जाट सूरजमल ने
    मुगल सेनापति के साथ मिलकर कोल के घासेड़ा के
    राजपूत राजा बहादुर सिंह पर हमला किया था।
    महाराजा बहादुर सिंह ने जबर्दस्त मुकाबला करते
    हुए मुगल सेनापति को मार गिराया। पर दुश्मन
    की संख्या अधिक होने पर किले में मौजूद
    सभी राजपूतानियो ने जोहर कर अग्नि में जलकर
    प्राण त्याग दिए उसके बाद राजा और उसके
    परिवारजनों ने शाका किया। इस
    घटना का जिकर आप "गुड़गांव जिले के गेजिएटर" में
    पढ़ सकते है
    10) युद्ध में जाते से पूर्व "चारण/गढ़वी"
    कवि वीररस सुना कर राजपूतो में जोश पैदा करते
    और अपना कर्तव्य याद दिलाते कुछ युद्ध जो लम्बे
    चलते वह चारण भी साथ जाते थे चारण गढ़वी और
    भाट एक प्रकार के दूत होते थे जो राजपूत राजा के
    दरबार में बिना किसी रोक टोक आ जा सकते थे
    चाहे वो दुश्मन राजपूत राजा ही क्यों ना हो
    11) राजपूताने के सभी बड़े किले के बनने से पूर्व एक
    स्वऐछिक नर बलि होती थी कुम्भलगढ़ के किले पर
    एक सिद्ध साधु ने स्वऐछिक दी थी
    12) राजपूताने के ज्यादातर किलो में गुप्त रास्ते
    बने हुए है आजादी के बाद और सन 1971 के बाद
    सभी गुप्त रस्ते बंद कर दिए गए है

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